साथ निभाना साथिया आज का / आज फिर सूरज की तलाश में भटक सा गया था वो अनभिज्ञ का अहंकार एक काले छिद्र सा तो है यूँ तो आकाशगंगाओं की रौशनी कम पड़ जाती है जिस अनंत घनत्व में जाने कितने 'संदीप' लगे थे फिर भी उस स्याह में उजाला लाने में|.